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चंडी यज्ञ एक अत्यंत शक्तिशाली और दिव्य वैदिक यज्ञ है, जो माँ चंडी (माँ दुर्गा के उग्र और रक्षक रूप) को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। इसमें "देवी महात्म्य" या "दुर्गा सप्तशती" के मंत्रों और श्लोकों का उच्चारण करते हुए यज्ञ की अग्नि में आहुतियाँ दी जाती हैं।

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🔥 चंडी यज्ञ क्या है?

चंडी यज्ञ एक अत्यंत शक्तिशाली और दिव्य वैदिक यज्ञ है, जो माँ चंडी (माँ दुर्गा के उग्र और रक्षक रूप) को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। इसमें "देवी महात्म्य" या "दुर्गा सप्तशती" के मंत्रों और श्लोकों का उच्चारण करते हुए यज्ञ की अग्नि में आहुतियाँ दी जाती हैं।

माँ चंडी को असुरों का नाश करने वाली, भय को दूर करने वाली, और शक्ति प्रदान करने वाली देवी माना जाता है। यह यज्ञ विशेष रूप से नकारात्मक शक्तियों, शत्रु बाधा, और संकटों से मुक्ति के लिए किया जाता है।

🕉️ चंडी यज्ञ की प्रक्रिया

  1. संकल्प – यज्ञ करवाने वाले व्यक्ति का नाम, गोत्र, और उद्देश्य बताया जाता है।
  2. गणेश पूजन और षोडश मातृका पूजन
  3. देवी दुर्गा का आवाहन
  4. दुर्गा सप्तशती पाठ (700 श्लोक) – तीन चरित्रों में विभाजित:
    • प्रथम चरित्र – महाकाली की स्तुति
    • द्वितीय चरित्र – महालक्ष्मी की कथा
    • तृतीय चरित्र – महासरस्वती का वर्णन
  5. हवन – सप्तशती मंत्रों के साथ यज्ञ कुण्ड में घी, जौ, तिल, नवग्रह सामग्री, और विशेष औषधियाँ समर्पित की जाती हैं।
  6. आरती, पूर्णाहुति और प्रसाद वितरण

चंडी यज्ञ के लाभ

  1. दुर्भाग्य और कष्टों का नाश
    – जीवन में आ रही बार-बार की समस्याओं, रुकावटों और दुर्घटनाओं से मुक्ति।
  2. शत्रु और नकारात्मक शक्तियों से रक्षा
    – तंत्र-मंत्र, नज़र दोष, शत्रु बाधा आदि से सुरक्षा।
  3. आंतरिक शक्ति और साहस में वृद्धि
    – आत्मबल, आत्मविश्वास और मानसिक शक्ति का विकास।
  4. संतान सुख और परिवार में शांति
    – संतान संबंधित बाधाएँ, कलह या तनाव शांत होता है।
  5. व्यापार, करियर, और परीक्षा में सफलता
    – चंडी यज्ञ से तेज, बुद्धि और निर्णय क्षमता में वृद्धि होती है।
  6. ग्रह दोषों से राहत
    – विशेष रूप से राहु-केतु, शनि दोष, और पितृ दोष के निवारण में प्रभावी।
  7. साधना और आध्यात्मिक उन्नति
    – ध्यान, भक्ति और अध्यात्म के मार्ग में तीव्र प्रगति।

📅 चंडी यज्ञ कब करें?

  • नवरात्रि (विशेष रूप से)
  • अष्टमी / नवमी तिथि
  • पूर्णिमा / अमावस्या
  • किसी विशेष कार्य से पहले या जीवन में भारी संकट के समय
  • ग्रहण या कालसर्प योग जैसी अशुभ स्थितियों में