
नव चंडी यज्ञ एक अत्यंत शक्तिशाली, दिव्य और विशिष्ट वैदिक यज्ञ है जिसमें दुर्गा सप्तशती (700 श्लोक) का पूर्ण पाठ और देवी चंडी (दुर्गा के नव रूपों) की पूजा के साथ विशेष हवन किया जाता है।
🌸 नव चंडी यज्ञ क्या है?
नव चंडी यज्ञ एक अत्यंत शक्तिशाली, दिव्य और विशिष्ट वैदिक यज्ञ है जिसमें दुर्गा सप्तशती (700 श्लोक) का पूर्ण पाठ और देवी चंडी (दुर्गा के नव रूपों) की पूजा के साथ विशेष हवन किया जाता है।
"नव" का अर्थ है नौ शक्तियाँ, यानी माँ दुर्गा के नौ रूपों (नवरात्रि के नौ देवी रूप) – शैलपुत्री से सिद्धिदात्री तक – और चंडी माँ दुर्गा के उग्र, रक्षक और राक्षस विनाशिनी स्वरूप का प्रतिनिधित्व करती हैं।
इस यज्ञ का उद्देश्य:
- जीवन के गंभीर संकटों से रक्षा,
- कर्मों की शुद्धि,
- और अत्यधिक शुभ फल की प्राप्ति होता है।
🔱 नव चंडी यज्ञ की प्रक्रिया
- संकल्प – यज्ञ करवाने वाले व्यक्ति का नाम, गोत्र और उद्देश्य।
- गणेश पूजन, नवग्रह पूजन, षोडश मातृका पूजन
- नवदुर्गा का आह्वान और पूजन
-
दुर्गा सप्तशती पाठ (13 अध्याय, 700 मंत्र) – त्रि-चरित्र रूप में:
- महाकाली चरित्र
- महालक्ष्मी चरित्र
- महासरस्वती चरित्र
- हवन / यज्ञ – हर मंत्र पर विशेष सामग्री के साथ आहुति।
- पूर्णाहुति, आरती, प्रसाद वितरण
✅ नव चंडी यज्ञ के लाभ
-
⚔️ शत्रुओं का नाश और रक्षा
– नकारात्मक ऊर्जा, तंत्र-मंत्र, नजर दोष और शत्रु बाधा से सुरक्षा। -
💰 धन, वैभव और समृद्धि
– मां लक्ष्मी के स्वरूप की कृपा से आर्थिक स्थिति में सुधार। -
👶 संतान सुख और परिवार की सुरक्षा
– संतान प्राप्ति की कामना, संतान संबंधी बाधाओं से मुक्ति। -
🧠 बुद्धि, शिक्षा और परीक्षा में सफलता
– छात्रों और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए विशेष फलदायी। -
🧘♂️ कर्म शुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति
– जन्मों के पाप नष्ट होते हैं, आत्मा की शुद्धि होती है। -
🌌 ग्रह दोष और पितृ दोष से मुक्ति
– विशेष रूप से राहु, केतु, शनि दोष और कालसर्प योग में अत्यंत प्रभावी। -
🙏 मनोकामना पूर्ति
– विवाह, नौकरी, संतान, सुख-शांति जैसे सभी कार्यों में सफलता।
📅 नव चंडी यज्ञ कब करें?
- नवरात्रि (विशेष रूप से)
- अष्टमी, नवमी, अमावस्या, पूर्णिमा
- किसी बहुत बड़े संकट के समय
- पितृ पक्ष या ग्रहण काल में
- कालसर्प दोष या विशेष ग्रह दोष के शमन हेतु
📌 विशेष:
- यह यज्ञ विशेष रूप से अनुभवी विद्वानों/पंडितों द्वारा ही संपन्न कराया जाता है।
- पूजा की अवधि आमतौर पर 1 से 3 दिन की होती है (विशेष विधान के अनुसार)।